शीर्षक |
मुलाखतकार |
प्रसिद्धी |
चौकशा : मतकरींच्या |
अरुण टिकेकर |
ललित, ऑक्टोबर, १९७५ |
लोक'१९७८ च्या प्रकाशझोतात र.म. |
श्रीपाद डोंगरे,हेमंत करंडे |
लोकमत, १९७९ |
लोककथा १९७८ संदर्भात |
राजीव नाईक |
भरतशास्त्र , मार्च-एप्रिल |
जनता कोर्टात नाटककार /एकांकिकाकार र.म |
राजीव जोशी |
नाट्यदर्पण, १९८१ |
लिहतो तेव्हा दिग्दर्शक नसतो.... |
पद्माकर कुलकर्णी |
तथास्तु, १९८१ |
मुलाखत मतकरींची |
____________ |
रविवार सकाळ, ऑक्टोबर, १९८२ |
निखळ असं आपल्याकडे काही नसतं ! |
शशिकांत नार्वेकर |
रसरंग, १९८२ |
नाटककार र.म .शी एक दिलखुलास संवाद |
डॉ .वि.भा देशपांडे |
विशाखा, १९८३ |
वास्तवातले नाट्य आणि नाटक |
अजितेम जोशी |
चित्रानंद, १९८३ |
मतकरींशी गप्पा टप्पा |
सुधाकर फडके |
चित्रानंद, १९८३ |
कार्यकारी अध्यक्ष आणि नाट्यसंमेलनाच्या अध्यक्ष ,
दोन हवेत
|
|
रसरंग ,फेब्रुवारी,१९८६ |
Write Stuff-P&R.Matkari/couples on Marathi
Stage
|
Mrunalini Falnitkar |
Bombay, जुलै, १९८६ |
केवळ नाटककार जबाबदार कसा ? |
रवींद्र खोत |
मुंबई,सकाळ,जानेवारी,१९८८ |
On Loksatta ,१९७८ |
|
NCPA Facts +News मार्च, १९८८ |
दर्जेदार नाटकं लिहायची कोणासाठी? |
राजा कारळे |
साहित्य जत्रा, लोकमत, मार्च, १९८८, दैनिक गोमंतक, मे १९८८ |
नाट्यसंहिता आणि दिग्दर्शन |
अरविंद औंधे |
ललित नाटक विशेष .मे-जून, १९८८ |
मला स्वतःमधूनच स्फूर्ती घ्यावी लागते |
|
ललित नाटक विशेष .मे-जून, १९८८ |
हा झुंडशाहीत साहित्यिक कसा लढणार? |
दिलीप प्रधान |
ऑक्टोबर, १९८९ |
माझ्यातला कथाकार.... |
मुकुंद कुळे |
आपला महानगर,डिसेंबर, १९९१ |
बहुरुपकर्मी |
चारुशीला ओक |
आठवड्याचे मानकरी ,चतुरंग,लोकसत्ता ,एप्रिल, १९९३ |
Our insecurity emboldens the corrupt !
(On' Bakasur"
|
Prashant Dhavan |
Sunday Free press Journal,ऑगस्ट, १९९४ |
मतकरींच्या मनातला बकासुर |
मुकुंद कुळे |
१९९४ |
No Comprpmises ! |
Anjum Katyal |
Seagull Theatre Quarterly, ऑक्टोबर, १९९४ |
एक कलाकार,एक संध्याकाळ |
चतुरंग'.पुरंदरे सभागृह |
गिरगाव :नंतर संग्रहित |
तोंडवाला' लघुपट संबंधित र.म.शी बातचीत |
खोजा ,याळगी |
बेळगाव तरुण भारत |
पैश्यापेक्षा आवाहनपूर्ण निर्मितीतला आनंद महत्वाचा ! |
|
रसरंग ,१९९५ |
साटंलोटं'ची अमेरिका वारी |
जयंत पवार |
चतुरंग , लोकसत्ता , डिसेंबर, १९९५ |
मनात स्वतःविषयी असमाधान हवं ! |
मुकुंद कुळे |
आज दिनांक, सप्टेंबर, १९९५ |
एक माणूस कलावंत |
कमलाकर नाडकर्णी |
अक्षर, १९९६ |
व्यक्ती आणि वल्ली...इत्यादी |
विनोद भट |
बत्तीशी , १९९६ |
मतकरी-नाडकर्णी परस्परसंवाद
बेळगाव वाङ्मय चर्चा मंडळ
|
प्रतिनिधी
संजीव ओक
|
दै .बेळगाव तरुण भारत
नोव्हेंबर १९९६ (पुन) आसमंत, मु.तरुण भारत मे, १९९९
|
माझ्या लिखाणाची दखल घेतील! |
शिरीष लाटकर |
इंद्रधनू , लोकसत्ता, ऑक्टोबर, १९९७ |
मूळ कलाकृतीवर अन्याय होऊ दिला नाही!
('व्यक्ती आणि वल्ली' विषयी )
|
मोनिका गजेंद्रगडकर |
बातचीत, लोक.डिसेंबर, १९९७ |
नाटक प्रायोगिक कि व्यावसायिक,
यापेक्षा त्याचा परिणाम महत्वाचा !
|
शिल्पा शिवलकर |
डिसेंबर, १९९७, कव्हर स्टोरी ,साप्ताहिक सकाळ |
माझं लेखन लोकांना आशावादी दृष्टीकोन देण्यासाठी |
कमलाकर नाडकर्णी
मंगला आठलेकर (शब्दां)नीना उपाध्ये ,सु.ल.गद्रे पुरस्कारप्रसंगीं
|
रंगनाद ,
महाराष्ट्र टाइम्स फेब्रुवारी , १९९८
|
साहित्यिक आधी एक चांगला माणूस असायला हवा ! |
वैशाली रोडे |
आपलं महानगर ,नोव्हेंबर, १९९८ |
र.म एक अस्वस्थ कलावंत |
डॉ सुधा जोशी |
अमृतघन, कोमसाप मुं.जि संमेलन स्मरणिका नोव्हेंबर, १९९८ |
बहुविध कला - कर्तृत्वाचे स्वामी र.म |
डॉ सुधा जोशी |
मार्मिक, डिसेंबर, १९९८ |
खर्च आणि अपेक्षा वाढल्या ,कि मिंधेपणा येतो
( साहित्य संमेलनाविषयी )
|
सुरेंद्र गांगण |
मुला.आमची मुंबई ,दै.लोकमत जानेवारी, १९९९ |
गरिबांसाठी टी -बॉक्स थिएटर |
जयंत पवार |
रंगनाद , महाराष्ट्र टाइम्स मार्च , १९९९ |
युद्धजन्य परिस्थितीला स्वार्थी राजकारण कारणीभूत |
(शब्दां )प्रतिमा जोशी |
म .टा .जुन, १९९९ |
तुम्ही तिथं....'च्या वाचनाविषयी |
सोनाली देशपांडे |
आपलं महानगर ,ऑक्टोबर, १९९९ |
खेकडा' विषयी |
एक पुस्तक,एक लेखक |
पद्मगंधा , १९९९ |
मराठी रंगभूमी व शिक्षक |
(शब्दां)उमाकांत कामात |
नादब्रह्म परिवार ,नृत्य नाट्य महोत्सव, स्मरणिका नोव्हेंबर, १९९९ |
एन्रॉनची देणगी आणि साहित्यिकांचा मिंधेपणा |
अविनाश कोल्हे |
लोकमत, नोव्हेंबर, १९९९ |
चांगलं नाटक करण्यासाठी प्रामाणिकपणा महत्वाचा ! |
डॉ.मुकुंद करंबेळकर व इतर |
रंगगंध चाळीसगाव चतुरंग, लोकसत्ता जानेवारी, २०००
कलारंजन, सकाळ जानेवारी ,२००० ,लोकमत,जानेवारी,२०००
|
साहित्यिक होण्याची महत्वकांक्षा नव्हती ! |
(शब्दां) लता दाभोलकर |
अक्षरे अंतरीची ,मुं .तरुण भारत डिसेंबर, २००० |
समांतर आणि व्यावसायिक रंगभूमीवरील अंतर
कमी झालाय
|
प्रतिनिधी |
युगांतर,महाराष्ट्र मे, २००१ |
साहित्यात,सुपरनॅचरल हि कल्पना काव्यमय |
सोनाली देशपांडे |
चित्रवाहिनी,तरुण भारत,जून, २००१ |
" गहिरे पाणी":५०व्या भागाच्या निमित्ताने |
निलय वैद्य |
म .टा .जून , २००१ |
टीव्हीवर गुडकथांना उत्तम प्रतिसाद |
वैशाली रोडे |
आपलं महानगर ,जून,२००१ |
माणसाच्या मानगुटीवर भूत असतं ते
अपराध-भावनेचं
|
अरुण अंतरकर |
रवि.ची मुलाखत,
सामना, जून २००१
|
गूढकथांनाही साहित्यिक मूल्य आहे |
नीलिमा जांगडा |
जी, जुलै २००१ |
कथाकार मतकरी |
डॉ. सुधा जोशी |
कथाश्री, दि. २००१
कथा संस्कृती, संपा. लेले -
पानसे ऑक्टोबर २००५
|
वारसा प्रामाणिकपणाचा (मुलांविषयी) |
वर्षा बेटावदकर |
रोहिणी, दि. २००१ |
बालरंगभूमी - आशा उद्याच्या |
रामकृष्ण बेटावदकर |
रवि. म. टाइम्स, डिसेंबर २००१ |
मुलांना सामाजिक समस्यांची तोंडओळख
करून देणे गरजेचे
|
डॉ. लीला दीक्षित |
सकाळ, डिसेंबर २००१ |
देशापुढचे प्रश्न सोडवणारी पिढी
साहित्यातूनच घडते !
|
वैशाली रोडे |
विशेष, आ. महानगर,
डिसेंबर २००१
|
कर्तव्यनिष्ठा म्हणजे धर्म |
(शब्दां.) वृषाली चारुदत्त |
माझा धर्म, म. टाइम्स |
मराठी रंगभूमी धोक्याच्या वळणावर |
संजीव ओक |
फुलोरा, सामना, एप्रिल २००२ |
र. म. शी बातचीत |
उषा तांबे |
साहित्य, जानेवारी-मार्च २००३ |
सारे जग अमेरिकी दहशतवादाच्या विळख्यात |
सिद्धार्थ हरळकर |
मुं. तरुण भारत, एप्रिल २००३ |
शब्दयात्री र. म. |
मेघना निरखीवाले |
सर्वोत्तम दि. २००३ |
व्यावसायिक रंगभूमीची दखल घेतली गेली... |
(संगीत नाटक अकादमी
पुरस्काराच्या निमित्ताने )
|
रवि. लोकसत्ता,
डिसेंबर २००३
|
पारसी कॉलनीची नजाकतच वेगळी |
प्रतिनिधी |
परिसर' नवशक्ती, डिसेंबर . २००३ |
समाजपरिवर्तनाची जबाबदारी एकट्या
साहित्यिकावरच का ?
|
डॉ. सुधा जोशी,
मुकुंद टाकसाळे
|
मॅजेस्टिक गप्पा,
जानेवारी ,२००४
आ. महानगर, जानेवारी ,२००४
|
...तर नाटकाला वेगळा स्वभावही प्राप्तः होईल! |
शब्दांकित |
रवि. लोकसत्ता, फेब्रुवारी २००५ |
आजच्या पिढीवर जबाबदारी अधिक |
(शब्दां.) सोनाली देशपांडे |
आमच्या वेळी /
युवा, सकाळ, मार्च '२००५
|
संघर्षाच्या नव्या पद्धतीचा शोध |
शब्दांकित |
कामगार नेता,
काम. दिन विशे. मे २००५
|